संवाद (कविता संग्रह )

 

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कविता संग्रह

संवाद

(कविता संग्रह )  

 

 

 

 

 

रवि रंजन गोस्वामी

 

 

 

 

Copyright © 2014 Ravi Ranjan Goswami

All rights reserved.

 

 

Address

Qr No. 93 type4 South End Customs Quarters,

Willingdon Island, Kochi, Pin – 682003, Kerala.

 

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First Published: January 2014
 

 

Price: ` 120/-

 

 

 

Cover Design

Tisha Mukherjee

 

 

 

Distributed by

purushottam-bookstore.com

power-publishers.com

 

 

 

 

 

समर्पण

 

मेरी माँ श्रीमती भगवती देवी,

पिता श्री पुरुषोत्तम दास गोस्वामी,

जीवन संगिनी श्रीमती केश कुमारी

एवं पुत्री दिविता गोस्वामी

 

 

 

 

 

Preface

This is a small collection of my short poems, written in Hindi language. These poems are expressions of my deep thoughts and feelings and my reflections on self. In many of these poems I have talked to my “self”, hence the name of this book Samvad, which means dialogue.

              Ravi Ranjan Goswami

 

 

 

 

 

मैं

मैंने किया तो बहुत किन्तु ,

क्या मौलिक !

हाँ तुम्हें  पहचाना जरूर ,

पूर्ण या आंशिक।

तुम्हारे रूप का वर्णन ही

महाकाव्य बना।

तुम्हारी शक्ति का उपयोग

उद्योग बना ।

तुम में लींन मैं हुआ /न

तो देवत्व मिला।

तुम मैं न बन सका गर

तुम्हांरी इच्छा

या मेरी नियति

तुम्हें  ही ज्ञात हो।

 

 

मौन

तुम्हारा मौन l

जन्म लेना ,

संदेह,भय ,आतंक ,

कायरता से कलंकित ,

आरोप l

समय कम है;

कलिमानव ,

उघार कर देखे

आत्मा के घाव l

वे उलझे हैं ,

लकीरों के निशानों में ,

छायाएं मात्र l

संदेह आशावान है

भय अज्ञात l

शिव अराध्य है

विनाश करने पर भीl

प्रलय के बाद

सृष्टि का विधान

नियत है l

 

 

 

 

याद

मैं तुम्हें भूला हूँ कभी याद नहीं।

इस तरह कभी याद भी आयी नहीं।

 

चिट्ठियां आतीं रही तमाम इस बीच ,

कोई एक चिट्ठी कभी आयी नहीं।

 

चिट्ठियां मैनें भी लिखीं थीं बहुत ,

एक चिट्ठी पोस्ट  कर पायी नहीं।

 

यूँ तो फटे हाल रहते हैं

शौक में कोई कमी आयी नहीं।

 

निछाबर हैं जन्नत की सहूलियतें सारीं ,

तुम्हारे तसब्बुर की कोई भरपाई नहीं।

 

 

यादें

कभी जब मिलोगे प्रिय  ,पूछूँगा l

क्या मैं ही तड़पा ?या

तुम्हें  भी मेरी याद थी ?

मुझे तो कर देते है विकल

पल-पल ,

गुजारे थे साथ कभी ।

 

 

 

 

रात की शिकायत

सुबह की आशा ,

दोपहर का संघर्ष ,

शाम की उदासी ,

बेचैन रात।

रात को शिकायत है दिन से

और आँखों में कटती है।

दिन में रात

आँखों में बसती है

और देखती है ;

उगना सूरज का ,

चढ़ना सूरज का और

ढल जाना।

 

 

मैं फिर देखता हूँ ,

स्वप्न स्वप्निल रात के

किन्तु रात को शिकायत है दिन से

और आँखों में कटती है।

 

 

वियोग

चकित क्यों ?

कुछ हो गया अनायास ?

सच !

मुझे मालूम न था ,

प्रेम।

तुम साथ थे।

संयोग भुला देता है।

वियोग नाहक बदनाम ,

जो प्रेम का पता देता है।

यात्रा में मुसाफिर ,

मिलते है बिछड़ते हैं।

किसी एक का बिछड़ना ,

असह्य होता है।

इच्छायें  अतृप्त ,

मन उदास आहात ;

क्यों होता है ?

और जो जीवन सफ़र हो

और तुम सा सहयात्री ,

क्यों कर बिछड़ें

पुनः मिलने को भी?

 

 

शराबी

किसी ने की मोहब्ब्त

और शराबी हो गया।

किसी ने की नफरत

और शराबी हो गया।

कुछ उसने पा लिया

और वो शराबी हो गया।

कुछ उसने खो दिया

और वो शराबी हो गया।

उसे आसानियाँ थीं

वो शराबी हो गया।

उसे दुश्वारियां थीं

वो शराबी हो गया।

उसे पाना था सच को

वो शराबी हो गया।

उसने झूँठ पाया

और शराबी हो गया।

मुझे मिल जाओ तुम

और खुद पिलाओ जो ,

मैं भी शराबी बन जाऊं l

 

 

शायद

तुम्हें क्या चाह थी ?

क्यों ?

कहूं मैं स्वयं।

कहा नहीं मैंने।

मौन याचना

तुम तक पहुंची नहीं।

तुम संवेदना शून्य तो नहीं !

क्या झूठी थी मेरी चाहना ?

फिर तुम मिले भी ;

तो क्यों न भेद पाया ? कवच ,

धारित नया संकोच।

शायद परिणाम था

चोरी हो गया अल्हड़पन।

 

 

सूरज से वार्ता

बहुत अरसे के बाद आज
मैंने सूरज से बात की ।
बहुत खुश हुआ,बोला -
पहले जैसे सुबह सबेरे मिलते
कितना मज़ा आता l
क्या हुआ ? दिखते नहीं
सब खैरियत तो है ?
मुझे याद नहीं करते ?
हमारी पुरानी दोस्ती का वास्ता
क्यों बदल लिया रास्ता ?
सुबह सुबह तुम नदी किनारे
दौड़ा करते थे मेरे साथ ।
और शाम मुझे विदाई देने भी
आ ही जाते थे ।
कभी अकेले कभी मित्रो के साथ ।
कहना पड़ा -दोस्त !
तुम से मिलने का मन 
आज भी बहुत करता है ।
याद भी बहुत करते है ।
लेकिन पहले जैसी अल्हड मुलाकाते
संभव नहीं ।

क्योंकि अब मै
कॉल सेंटर में
नौकरी करता हूँ l

(उन सभी को समर्पित जो रात की पाली में काम करते हैंl)

 

 

 

 

स्वप्न

कभी स्वप्न

कतारों में आते हैं।

कभी जागते

कभी सोते हुए

और बिसर जाते हैं।

कोई एक स्वप्न

पकड़ता है मन ,

चाहे या अनचाहे

और टूटता है इस तरह कि ,

किसी दूसरे की

आँखों के स्वप्न भी

डराते हैं।

खुद की आँखों के स्वप्न

हमेशा के लिए

मर जातें हैं।

हसरतों की आग

मैं झांकता हूँ तुम्हारी आँखों में ,

पा लेने को अक्स अपना।

मुंह न मोड़ा करो।

तुम मुझे देखो।

जिस कदर चाहो।

मुंह न फेरूंगा।

जल जाऊँगा

हसरतों कि आग में लेकिन।

 

 

हिचकियाँ

हिचकियाँ आतीं है बेवजह

या कोई याद करता है?

याद बेवजह है

या सरोकार है कोई ?

गुमनाम अंधेरों में

खोया हुआ मैं।

वादा संजो रखा है

अपने दिल में।

कहा था फिर मिलेंगे जरूर।

उम्मीद दिल में सुलगाई है।

जला रखी है एक शमा चौखट पर

पता नहीं

वो कभी आ ही जाएँ।

 

 

आमंत्रण

क्या दे पाउँगा आतिथ्य ?

किन्तु,

प्रतीक्षा है।

तुम आओ तो सही।

अहं हूँ स्वयं

क्यों अधूरा ?

तुम में देखता

भविष्य।

तुम आओ तो सही

मुझ से नाराज सही

घर से शिकायत कैसी

अब तक जान सका ,

तुम आ के बता जाओ तो सही।

 

 

आराध्य

प्रत्यक्ष मुखरित हो !

साहस नहीं l

क्यों ?

मंडराता है काला बादल l

कपट करता है साथ ,

क्यों ?

सम्मान कैसा ?

भंग विश्वास लिए

आराधना कैसे हो ?

ढूंढ़ता है बहाना

क्यों

कृत्य से पहले ?

प्रवंचक !

आराध्या कैसा ?

 

 

उच्छ्वास

उफ़!

ये उदास शाम और तन्हाई।

कोई एक ग़ज़ल छेड़ दे ,

बहती हुई पुरवाई।

ले आये कोई सन्देश ,और ,

प्रीतम की बात छेड़ दे।

 

 

उम्मीद

 आओ कुछ उम्मीदों की बात करें।

क्या हो की? ग्लोबलइजेशन में

व्यापार नहीं ,

सीमा रहित प्यार हो ,

विश्वास हो.

क्या हो की?

स्वेच्छा से ,

सभी देश एटमी हथियार ख़त्म कर देंl

उन्हें बनाना भी बंद कर दें .

क्या हो की?

हर बच्चे को .

पढने-लिखने ,खेलने कूदने और

भरपेट भोजन का अधिकार हो

आओ कुछ उम्मीदों की बात करें ।

 

 

विडम्बना

मैं साँस ले रहा हूँ ,

सूंघ रहा हूँ निर्वात l

कड़ी धूप में देख रहा हूँ अंधकार ,

समुन्दर की तलहटी में सूखा पड़ा है

भेड़ियों का दल

मंथन के लिए खड़ा है l

                                                    कैद

तुम्हारी आँखों में ,

मैंने झाँका था।

तलाशा था।

उस प्रश्न का वो उत्तर

जो मैंने सोच रखा था।

तुम्हें भी कुछ पूछना था

और चाहिए था वो उत्तर

जो तुमने सोच रखा था।

हम दोनों ही

खुद की कैद से

कभी आज़ाद न थे।

 

 

 

ख्याल

बहुत रात देर तक नींद नहीं आयी l

क्या क्या ख्याल आये !

ख्यालों में ख्याल आये l

ख्यालों में तुम भी थे

और बहुत सी यादें l

बहुत से सवाल -जवाब ,

कुछ अन सुलझे सवाल l

मीठी-कड़वी यादें ;

यादों के झुण्ड l

यादों की भीड़ में

वो यादें भी थी ,

सिर्फ हमारी यादें ;

हमारी तुम्हारी निजी यादें l

बहुत देर रात तक ---

 

 

गाली

जब तक मैं तुम्हें दूँ गाली

और मुझे न लगे।

तुम मुझे गाली दो

और मैं सहन न कर सकूं।

कुछ कमी है।

तुम्हारी प्रार्थना मेरी प्रार्थना से

अलग हो ही नहीं सकती।

भाषा का भम है।

भाषा सम्प्रेषणी हो कैसे ?

आओ लौट चले हम अपने बचपन में

क्यों न हों सहस्त्रों वर्ष।

जीवन चिरंतन है ,

उम्र छलावा।

सभ्यता पुरानी है ,

क्यूँ ये नादानी है।

हो सके तो

तुम मुझे ऐसी गालीदो

जो तुम्हारे लिए न हो।

 

 

ग्लानि

उजालों से है परहेज ,

अँधेरे मुझे डरते हैं l

उंगलियां सिर्फ उठती नहीं ,

गड़ जाती है जिस्म में l

उनकी आँखों में सवाल,

अन देखे ही दिख जाते हैं l

बदल सकते हैं  कितने रास्ते ?

हर गली में बसते  हैं ,

जो मुझ से प्रेम करते हैं l

                                            

                                             गुफ्तगू

कुछ हम कहें कुछ तुम कहो ,

गुफ़्त्गू  कुछ हो l

यूँ गुम सुम

यूँ चुप चुप

रात जाने न दो l

होंठ गर सिले है हया से।

निगाहों से बात हो।

पलकें बोझिल है तो

जज़बातों से बात हो।

कहाँ गयी वो शोखी,

वो चंचल अदाएं ?

आज क्या बात है कि

यूँ चुप हो ?

कुछ हम कहें कुछ तुम कहो

गुफ्तगू कुछ हो।

जश्न

आओ

आज रात जश्न मनायें।

हम जागें ,

साकी को जगाएं

पैमाने फिर फिर भरे जायें

 

डग मग क़दमों से

कोई जाता है।

उसे थामो।

उसने शायद कम पी है।

उसे और पिलायें

आओ जश्न मनायें।

 

 

जिंदगी

जीतना चाहते हो जिंदगी कुटिल,

सरलता से ?

दुष्कर होता है बहुधा काटना

नदी, पर्वत या रेगिस्तान l

तिस पर छलनामयी

पहचान बनती नहीं।

बदल जाते है गवाह ;

कद,काठी,रूप का वर्णन l

बौना आदमी ;

दिग्विजयी सा एक पल,

फैला देता है हाथ।

झांकता अंधकार l

 

 

तिनके बहुत बिखरे है

लेकिन हाथों में हथकड़ी

समय की धारा

क्या ले जायेगी वहाँ

मिल सकती है जहाँ जिंदगी l

 

 

डर

रातों के काले साये ,

डराते थे कभी।

जब चौंक कर उठ बैठते थे ,

देख कोई डरावना स्वप्न।

रातो के काले साये

नहीं डराते अब।

डर लगता है तो

दिन की हकीकत से।

 

 

तुम्हारी खोज

तुम्हारे छलाबे

हर बार

तोड़कर  बंधन

बढ़ आने को व्यग्र करते हैं l

पास होकर

बढ़ता है अहसास

तुम दुर्गम हो l

किन्तु ,अस्वीकार करता हूँ

अपनी सीमायें l

तुम्हें जानने समझने की जिज्ञासा ,

निराशा से परे नकारती

स्थान- समय ,

जुटा देती पुनः

ऊर्जा जिजीविषा l

 

 

तब जन्म लेती हैं

नवीन पगडंडियां ;

जिन पर कभी स्वतंत्र

कभी कोई वैशाखी लेकर

बढ़ जाता हूँ तुम्हारी खोज में l

 

 

तुमने

तुमने खींच दिए चित्र

अंतरिक्ष -समयके

केनवास पर l

वो ही तुलिका

वो ही रंग l

चित्रों ने विच्छेदित कर बाँट लिया शीर्षक ;

तुम्हारी चेतना का अविच्छिन्न विस्तार ,

खंडित सा हो गया l

 

 

नया खयाल

तुम मेरी मंजिल हो ,

पा ही लूं शायद ;

ये हसरत बाकी रहेगी

कि हम-सफ़र होते l

 

ये पुराना ख्याल है

कि तुम बेवफा निकले l

नया ख्याल ये है कि

बहुत होश्यार थे l

 

 

तुम्हारा मोह

तुम्हारा मोह न दे सके तुम

एक प्याला कड़वा सच l

सुलाया थपकी दे

या कभी दिखाए स्वप्न,

जो बेनागा टूटते रहे l

आज शाम भी मेरी परछाईं

मुझ से लम्बी है l

तुम फिर मौन हो l

लेकिन अब मैं कल

सूरज से आँख मिलाऊंगा l  

 

 

 दर्पण

दर्पण में आज मेरा प्रतिबिम्ब नहीं दिखता ।

मै ही नहीं या दर्पण मैला है ?

क्यों चाहते हो कि,

माँगू तुमसे सब कुछ मै

कुछ तो ऐसा हो जो मेरा हो !

मेरा मै स्वयं संदिग्ध है

हिस्सों में बंटा कौन सा हिस्सा हूँ मैं

. अगर मै नहीं ,

तो फिर क्यों सुनता हूँ  अनगिनत प्रश्न?

क्यों अनुभव होती है प्यास ?

जो भी हो तुम से ही

मेरे अस्तित्व का भान होता है !

 

 

दाग

चाँद में दाग है।

सुना देखाऔर सहा होगा

तुम्हारे तन का दाग

कलेजे पर जलती सलाख सा

छुआ क्यों ?

मैं नकारूंगा

अपने प्यार से।

तुम उठना ,

इन सबसे ऊपर।

 

 

दीवारेँ

आओ गिराडालें कुछ दीवारें।

आँगन हवादार हो जाये।

कुछ घुटन सी है।

 

तुम न चाओ कि मैं बात करुं।

कह डालो कुछ ऐसी बात ,

मैं चुप रह न सकूं।

 

सिर्फ पिंजरा खोलना काफी नहीं है।

परों मै जान अब बाकी नहीं है।

 

 

 

तुम में सामने हो फिर भी

दूर कितने।

कुछ तुम करो कोशिश ,

कुछ मैं करीब आऊं।

आओ गिरा डालें

कुछ दीवारें।

 

 

धरतीपुत्र

मेरे पावों में चुभे काटों से

रिसता खून ,

जमीन लाल नहीं करता।

मेरा खून मटमैला है।

धरती का हूँ।

लोग ऐसा कहते हैं।

मैं मान लेता हूँ।

मेरे नाम क्या कोई

लिख गया वसीयत ?

मैं सोचता हूँ

कुछ लिख दूं

अपने वारिसों के नाम ,

 

 

सूखी मिट्टी पर

जो उठे और

सारे आसमान को

मटमैला कर दे।

 

 

नया शब्द

कोरे कागज़ पे लिखना चाहता हूँ।

क्या लिखूं कैसे लिखूं नहीं जानता हूँ।

पढ़े थे जितने अक्षर बेमानी  हो गए हैं।

कोई नये अक्षर बनाना चाहता हूँ।

ढाई-आखर भी बेमानी हो गए हैं।

नया कोई शब्द गढ़ना चाहता हूँ।

कोरे कागज़ पे लिखना चाहता हूँ।

तेरा नाम जुबान तक लाना गुनाह है।

नया कोई नाम देना चाहता हूँ।

कोरे कागज़ पे लिखना चाहता हूँ।

कहीं से इस तरफ कोई तूफ़ान गुजरे ,

चेहरे को जरा साफ करना चाहता हूँ।

कोरे कागज़ पे -----

 

 

सावन

कोई गीत गाओ सावन में।

मन भीग जाये सावन मे।

छूने दो ठंडी हवाओं को

तुम्हारा फूल सा चेहरा ।

उड़ने दो केश ,लहराने दो आँचल ।

भीग जाने दो जिस्म जाँ सावन मेँ।

घेर कर आईं काली घटाएँ ;

इन्हें झूम कर बरस जाने दो ,

सावन मेँ ।

 

 

नींद

नींद थी चिड़िया उड़ी पकड़े  न पकड़ाये ;

जाल बिछाया आप ने खुद ही फंसता जाये।

 

महलों से अक्सर खफा होती रहती नींद ,

मेहनतकश मजदूर को माँ का आँचलनींद।

 

 

बादल और बारिश

(एक बालगीत)  

बादल गुस्साये थे।

लड़ते भिड़ते आये थे।

धूम धूम धड़ाक।

धूम धूम धड़ाम।

बिजली कौंधी बार बार,

फिर पानी बरसा मूसला धार।

मुन्नी भागी मम्मी से चिपकी।

भैय्या भागा खिड़की बंद कर दी l

 

 

भूल ना जाऊं!

तुम्हारी याद कुछ धुंधला गयी है,

कहीं मैं भूल न जाऊं।

किसी को मिला राजपथ ,

किसी को पगडंडियां।

गलियों की भूलभुलईया में

कहीं मैं भूल न जाऊं।

आज भी रातों में कभी

याद आती है न आती सी।

सोता नहीं हूँ डर से

सुबह भूल न जाऊं।

कर लो तलाश तुम ही मुझे ,

पहले कि खुद को ही

कहीं मैं भूल न जाऊं।

 

 

मन करता है

मन करता है

लौट जाने को

उस ओर।

पीठ कर ली थी ,

हमने जिस ओर।

चले थे सोचकर

कि पालेंगे जहान।

जाना ,कि

बिना उनके

जहान कुछ भी नहीं।

 

 

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