एक परेशान लड़की

 

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अजित मोटर साइकिल स्टार्ट करके चलने ही वाला था कि कोई तेजी से आकर पिछली सीट पर बैठ गया । अजित ने पीछे मुड़ के देखा तो चौंक गया । वह एक जवान लड़की थी और काफी परेशान दिख रही थी।

“प्लीज मुझे मेडिकल ट्रस्ट हॉस्पिटल तक छोड दीजिये । ”

उसके चेहरे की बदहवासी देखकर उससे मना करते नहीं बना । अजित ने बाइक आगे बढ़ा दी । वैसे भी वह उसी दिशा में जाने वाला था ।

अजित ये तो समझ ही गया था कि लड़की किसी मुसीबत में है। वर्ना लड़कियां समान्यतः लिफ्ट नहीं लेती खास तौर से कोचीन शहर में जो आधुनिक है लेकिन सामाजिक रूप से किसी हद तक परंपराबादी। लेकिन उसने उससे कुछ पूंछा नहीं ।

अजित ने हॉस्पिटल गेट पर बाइक रोक दी।

“थैंक्स,” कहकर लड़की तेज कदमों से हॉस्पिटल के अंदर चली गयी।

अजित ने उसे जाते हुए पीछे से देखा । अब उसने ध्यान दिया लड़की ने हरे रंग का चूड़ीदार सूट पहना था । लड़की की कद काठी और फिगर आकर्षक थे । लड़की आँखों से ओझल हो गयी तो वह भी अपने गंतव्य की ओर बढ़ गया । रास्ते में वह सोचता रहा कि उसे उस लड़की से बात करना चाहिये थी । कुछ तो पूंछना चाहिये था ।

अजित तीन साल पहले कानपुर से कोचीन आया था । उसने कमला फैशन नाम से रेडीमेड कपड़ों की एक छोटी सी दुकान शहर के मिनी माल में खोली थी । उसने शहर के मध्य गांधीनगर कालोनी में एक छोटा सा फ्लैट किराये पर ले रखा था । दुकान मेडिकल ट्रस्ट हॉस्पिटल से थोड़ा आगे मुख्य मार्ग पर ही स्थित थी । उस समय वह दुकान ही जा रहा था । दुकान पहुँच कर वह काम  में लग गया।

रात में अपने बिस्तर पर लेटे हुए अजित लिफ्ट मांगने वाली लड़की के बारे में सोचने लगा । उसका सांवला कमसिन परेशान सा चेहरा और अस्पताल के अंदर जाते समय का दृश्य उसकी आँखों के सामने आ गये । वह सोचने लगा शायद उस लड़की का कोई खास संबंधी बीमार होगा और वहाँ भर्ती होगा । काश उसने उससे बात की होती और उसकी परेशानी पूंछी होती । सोचते हुए उसकी जिज्ञासा में एक बात और जुड़ी कि वह दक्षिण भारतीय थी या उत्तर भारतीय ?

उसके दुकान जाने का रास्ता वही था । दूसरे दिन दुकान जाते समय उसने अस्पताल के गेट के पास मोटर साइकिल रोक दी और इस उम्मीद में थोड़ी देर यहाँ वहाँ देखता रहा कि शायद वो लड़की उसे दिख जाये किन्तु निराशा हाथ लगी । उसके दुकान खोलने का समय था अतः वह ज्यादा देर वहाँ नहीं रुका और आगे बढ़ गया ।

 

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2

सारिका अस्पताल में अपने छोटे भाई भानु के सर पर ठंडे पानी की पट्टियाँ रख रही थी । भानु का बुखार बढ़ गया था । थोड़ी देर बाद भानु का बुखार कम हो गया था और वो सो गया था । 

सारिका ने भानु के पलंग के बगल में रखा स्टूल पलंग के पास खिसकाया और पलंग पर एक कोहनी टिका कर बैठ गयी । उसे इस समय अपने पिता की कमी खल रही थी। परिवार में उसे मिलाकर चार सदस्य थे। सारिका की बूढ़ी दादी लक्ष्मीकुट्टी , माँ माया और छोटा भाई भानु । सारिका के पिता रामन कुट्टी की कुछ वर्षों पूर्व मृत्यु हो चुकी थी । रामन कुट्टी अपने कई अन्य साथियों की तरह अच्छे भविष्य की तलाश में खाड़ी देशों की तरफ निकल गये थे । लेकिन दूर के ढोल सुहाने होते हैं । हालात बदल चुके थे । बंधुआ मजदूर की तरह दुबई की एक कंशटृक्शन कंपनी में कुछ साल काम कर वापस लौट आये । बमुश्किल इतनी ही बचत कर पाये थे कि  जो रुपए उधार लेकर वहाँ गये वो चुकता कर दिये और फिर ठन ठन गोपाल हो गये । उस पर गरीबी में आटा गीला शराब  पीने की लत लग गयी । पहले कभी अँग्रेजी शराब पीते थे फिर आर्थिक तंगी के चलते टोडी और फिर स्थानीय देशी शराब चारायम पीने लगे । एक रात एक बोतल देशी शराब लेकर घर आये और पीने बैठ गये । पीते पीते अचानक रामन कुट्टी के पेट में तेज दर्द उठा और सर चकराने लगा । थोड़ी देर बाद उन्हें खून की उल्टी हुई और वे अचेत होकर जमीन पर लुड़क गये । माया तुरंत अपने पति को सरकारी अस्पताल लेकर पहुंची । रामन कुट्टी को तुरंत भर्ती कर उपचार प्रारम्भ कर दिया गया । पता चला नौ ऐसे लोग और भर्ती थे । डाक्टरों ने बताया रामन कुट्टी सहित उन सभी लोगों की तबीयत जहरीली शराब पीने से बिगड़ी थी । दस में से चार लोगों की बमुश्किल जान बची । माया का सुहाग नहीं बच सका था ।

 

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3

अजित को रात में ठीक से नींद नहीं आयी। रात के लगभग दो बजे उसकी आँख खुल गयी । थोड़ी देर वह पुनः सोने की कोशिश में करवटें बदलता रहा । जब नींद नहीं आयी तो उठ बैठा । उसे कुछ खाने का मन किया । फ्रिज में सेब रखे थे । उसने एक बड़ा सेब निकाला और खाने लगा। सेब खाकर उसने कुल्ला किया और फिर बिस्तर पर जाकर लेट गया । सारी रात वह आधी अधूरी सी ही नींद सोया ।

दुकान जाने के रास्ते में फिर उसने हॉस्पिटल के पास अपनी मोटर साइकिल रोक दी । 

किस्मत अच्छी थी । उसने देखा गेट के नजदीक एक बस आकर रुकी और उसमें से वही लड़की उतरी । उसके हाथ में एक वजनी सा थैला था । जब तक अजित उसकी ओर बढ़ा वह तेजी से अस्पताल में चली गयी । अजित को उसका नाम तो पता न था जो नाम से पुकार लेता । जब तक अजित कुछ सोच पाता वह भीड़ में गुम हो चुकी थी ।

दूसरे दिन रविवार था । उसके दोस्त मंजीत ने उसे दोपहर के खाने पर अपने घर बुलाया था । मंजीत दिल्ली का रहने वाला था और पानमपिल्ली नगर में अपनी पत्नी सोना के साथ एक किराए के मकान में रहता था । मंजीत और सोना एक बुटीक चलाते थे । मंजीत अजित के कोचीन आने के पहले से यहाँ था और शहर से थोड़ा बेहतर ढंग से वाकिफ था ।

अजित के लिये दरवाजा सोना ने खोला ।

अजित ने मुस्कराते हुए हाथ जोड़ कर कहा ,”नमस्ते ,भाभी ।”

सोना ने मुसकराकर कहा ,”नमस्ते ,आओ अंदर आओ । ”

“मंजीत कहाँ है ?” अजित ने अंदर आते हुए पूंछा ।

“तुम ड्राइंग रूम में बैठो , वो अभी आते होंगे । पास में ही गए हैं ।”

अजित बैठकर समाचार पत्र के पन्ने पलटने लगा । थोड़ी देर में मंजीत आ गया । उसके हाथ में बीयर की एक बोतल थी । सोना को पता था अजित नहीं पियेगा अतः वह मंजीत के लिये एक खाली ग्लास और अजित के लिए एक ग्लास में मौसम्बी का रस ले आयी और टेबल पर रख दी ।

“क्या हाल है ?” मंजीत ने बीयर ग्लास में भरते हुए पूंछा ।

सोना खाने की तैयारी करने अंदर चली गयी थी ।

अजित ने जूस का एक सिप लिया और बोला ,”ठीक है ।”

“काम काज कैसा चल रहा है ?मंजीत ने पूंछा ।

“अच्छा चल रहा है भाई ।”अजित बोला ।

“और सुना । “

“मंजीत ,हाल में मेरे साथ एक अजीब वाक्या हुआ । “अजित बोला ।

“क्या हुआ ?”मंजीत ने उत्सुकता से पूंछा ।

अजित ने लड़की के द्वारा लिफ्ट लेने और हॉस्पिटल में जाने वाली बात बतायी ।

“बस इतनी सी बात है या कुछ और भी है ?” मंजीत ने मुस्कराते हुए पूंछा ।

“बात तो इतनी ही है लेकिन मुझे उसके बारे में और जानने की प्रबल इच्छा है । ”

मंजीत ने हँसते हुए कहा ,”तू अब शादी कर ले । मोटर साइकिल पर अपनी बीबी को घूमा । न लिफ्ट के लिये खाली जगह होगी। न कोई और लड़की तुझसे लिफ्ट मांगेगी और न कोई इस तरह की उलझन पैदा होगी। ”

“क्या हर समय मैं उसे साथ लिये घूमूँगा ?तुम भी कमाल की बात करते हो ,यार । “ अजित ने हँसते हुए कहा ।

इसी बीच सोना ने आकर पूंछा ,”खाना लगा दूँ? डाइनिंग टेबल पर खायेंगे या यहीं  लगा दूँ ?

“भाभी जी, आप तो पूरे समय व्यस्त हैं । कोई कामबाली नहीं है क्या?”अजित ने प्रश्न किया ।

“आज उसने छुट्टी ले ली। उसके घर में कोई बीमार है। ”सोना ने उत्तर दिया ।

मंजीत बोला, “तू साथ में खाएगी तो डाइनिंग टेबल पर नहीं तो यहीं ।”

“ठीक है मैं खाना यहीं लगा देती हूँ । मैं बाद में खाऊँगी।” कहकर सोना अंदर चली गयी ।

थोड़ी देर में सोना दो थालियों में पूरी ,सब्जी और खीर परोस कर ले आयी और टेबल पर रखकर चली गयी ।

 

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